सुख-दुख में संतुलन कैसे पाएँ? गीता श्लोक 38 से सीखें जीवन का असली अर्थ | भगवद गीता अध्याय 2 व्याख्या हिंदी में

श्लोक 38: एक पंक्ति जो मन के तूफानों को साधे सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥ गीता का ये श्लोक पहली बार पढ़ा था, तो लगा — “ओह, ये तो बस एक मोटिवेशनल लाइन है।” लेकिन जब मैंने इसे महसूस किया… अपने एक हार के पल में… तब ये सिर्फ श्लोक … Read more

सुख-दुख में समत्व: भगवद गीता श्लोक 38 की सीख और आज का जीवन संग्राम

श्लोक 38: एक पंक्ति जो मन के तूफानों को साधे मैंने उस रात श्लोक को बार-बार पढ़ा। मन कहीं रुक गया था: सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥ कितनी सरल पंक्ति है ना? लेकिन इसका मतलब… ओह, वो दिल की तहों तक उतरता है। “सुख-दुख को समान समझो। लाभ-हानि में फर्क … Read more

भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 37: आधुनिक जीवन में कर्तव्य और साहस का कालजयी संदेश

भागवत गीता श्लोक 37: संकट में साहस की राह परिचय: क्या आपने कभी ऐसा पल जिया है जब सब कुछ दांव पर लगा हो और दिल डर के मारे कांप उठा हो? मुझे याद है — 2024 के पेरिस ओलंपिक का वो क्षण, जब नीरज चोपड़ा के भाले की आख़िरी फेंक पर करोड़ों की नज़रें … Read more

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 33: धर्म और कर्तव्य का आधुनिक संदर्भ में गूढ़ विश्लेषण

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 33 का चित्रण – कर्तव्य, धर्म और आत्म-सम्मान का संदेश

Intangible WhatsApp Facebook X भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 33: धर्म से विमुख होने पर क्या होता है? “अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि। ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि॥ 33॥” “यदि तुम इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करोगे, तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होओगे।” भूमिका: जब गीता हमारे समय से … Read more