भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 39 का अर्थ – कर्म योग, आत्मज्ञान और अर्जुन की दुविधा का समाधान

1. एक पल जो ठहर गया: जब अर्जुन ने उठने से मना कर दिया युद्ध के मैदान की वो सुबह… अर्जुन का धनुष नीचे गिर पड़ा था। उसका कंठ सूख गया था। और भीतर एक सवाल… "क्या मैं युद्ध करूं? या भाग जाऊं?" मुझे आज भी याद है, जब मैंने पहली बार भगवद गीता को … Read more

सुख-दुख में संतुलन कैसे पाएँ? गीता श्लोक 38 से सीखें जीवन का असली अर्थ | भगवद गीता अध्याय 2 व्याख्या हिंदी में

श्लोक 38: एक पंक्ति जो मन के तूफानों को साधे सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥ गीता का ये श्लोक पहली बार पढ़ा था, तो लगा — “ओह, ये तो बस एक मोटिवेशनल लाइन है।” लेकिन जब मैंने इसे महसूस किया… अपने एक हार के पल में… तब ये सिर्फ श्लोक … Read more

सुख-दुख में समत्व: भगवद गीता श्लोक 38 की सीख और आज का जीवन संग्राम

श्लोक 38: एक पंक्ति जो मन के तूफानों को साधे मैंने उस रात श्लोक को बार-बार पढ़ा। मन कहीं रुक गया था: सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥ कितनी सरल पंक्ति है ना? लेकिन इसका मतलब… ओह, वो दिल की तहों तक उतरता है। “सुख-दुख को समान समझो। लाभ-हानि में फर्क … Read more

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 33: धर्म और कर्तव्य का आधुनिक संदर्भ में गूढ़ विश्लेषण

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 33 का चित्रण – कर्तव्य, धर्म और आत्म-सम्मान का संदेश

Intangible WhatsApp Facebook X भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 33: धर्म से विमुख होने पर क्या होता है? “अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि। ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि॥ 33॥” “यदि तुम इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करोगे, तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होओगे।” भूमिका: जब गीता हमारे समय से … Read more